Thursday, April 16, 2009

जब आप ही हमको नहीं समझा पा रहे हैं....

भुलाना लाख चाहे पर नहीं भुल पा रहे हैं ,
बंद आखों के आगे बस तुम्हारे साथ किसी और को पा रहे हैं ,
जल उठता हैं मन मेरा भर जाता हैं आँखों में संमदर,
कैसे संभालु अपने आप को बिखर ने तक टुट जाती हुँ ,
हम लाख चाहे पर प्यार की दिवानगी हद से आगे बढ जाती हैं ,
इसी दिवानगी को आप पागलपन नाम दे रहे हैं ,
तुम्हारे जैसे हर एक को नहीं बता पा रहे हैं ,
उन बेगानों को क्या समझाये जब आप ही हमको नहीं समझा पा रहे हैं....

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